महापौर की क़लम🖋️ से
विवेक से ही बनते है विवेकानंद,
इसलिए हे युवाओं! सशक्त बनों-देशभक्त बनों-नशामुक्त बनों।।
नमस्कार इंदौर,
आधुनिकता से सजे विश्व मंच पर भारत की पुरातन सभ्यता-संस्कृति-मर्यादा का गौरवगान कर, सम्पूर्ण जगत को माँ भारती के आगे नतमस्तक करवाने वाले कर्मयोगी स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर समस्त इंदौर वासियों एवं युवा साथियों को राष्ट्रीय युवा दिवस की अनंत शुभकामनाएं।
मित्रों! आज इस विशेष दिवस पर मेरे मन-मस्तिष्क में एक प्रश्न उत्पन्न हुआ कि क्या इस धरा पर सिर्फ एक ही स्वामी विवेकानंद जी अवतरित हुए हैं? क्या उनके व्यक्तित्व को आत्मसात कर उनके जैसा नहीं बना जा सकता? और यदि कोई विवेकानंद बनना भी चाहता है तो कैसे बना जा सकता है? इन समस्त प्रश्नों के प्रत्युत्तर में मुझे यह अहसास हुआ कि जिस किसी मनुष्य में धर्म, कर्म और जीवन लक्ष्यों को समझने का विवेक है, वही व्यक्ति स्वामी विवेकानंद जी के विचारों के समकक्ष है। अर्थात् स्पष्ट हो जाता है कि “विवेक से ही बनते है विवेकानंद”।
अब प्रश्न ये है कि मनुष्य के विवेक को जागृत और समृद्ध कैसे किया जाए? इसके प्रत्युत्तर में मुझे स्वामी विवेकानंद जी का एक कथन याद आता है “जो कुछ भी तुमको कमज़ोर बनाता है- शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक। उसे जहर के समान त्याग दो”। स्पष्ट है कि हमारे जीवन में कोई भी व्यक्ति या वस्तु जो हमें कमजोर बना रही है, उसका त्याग ही हमारे लिए श्रेयस्कर है। जब हम हमारे अंतर्मन में झाँककर आत्मावलोकन करते हैं तभी हमें हमारी बुराई या दुर्व्यसन दृष्टिगत होते हैं।
वर्तमान समय में नशे की प्रवत्ति चाहे वो गुटखा-पाउच हो, सिगरेट हो, शराब हो या अन्य नशे के उत्पाद हो, ये सभी उत्पाद हमारे युवाओं को शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक रूप से कमज़ोर बना रहे है। वर्तमान समय कि सबसे बड़ी चुनौती हमारे सम्मुख इन दुर्व्यसनों से हमारे युवाओं को मुक्त कराना है, क्योंकि यह युवावर्ग जो कि राष्ट्रनिर्माण में प्रभावी भूमिका निभा सकते हैं, वही युवा दुर्व्यसनों में उलझकर स्वयं तथा अपने परिवार को अंधकार की ओर धकेल रहे हैं।
विश्व में सर्वाधिक युवा आबादी वाला भारत देश इस समय सम्पूर्ण विश्व पर अपनी बुद्धिमत्ता के बल पर प्रभाव स्थापित करने की क्षमता रखता है, लेकिन यह हमारा दुर्भाग्य ही है कि हम इस युवाशक्ति का यथोचित लाभ नही उठा पा रहे हैं। वह युवा जिसे वायु के समान गतिशील होना चाहिए, लहरों से टक्कर लेना चाहिए, हर चुनौती से पार पाना चाहिए, वही युवा स्वयं को इन दुर्व्यसनों के दलदल में धकेल रहा है।
आज युवाओं को अवश्य ही आत्मावलोकन करने की नितांत आवश्यकता है कि वे किस ओर अग्रसर हो रहे हैं? वे राष्ट्रनिर्माण हेतु किन सकारात्मक भूमिकाओं का निर्वहन कर रहे हैं? वे अपने देश, समाज एवं प्रकृति के लिए क्या कर रहे हैं? अंत में वे स्वयं के बेहतर भविष्य के लिए क्या कर रहे हैं? बड़े ही दुःख की बात है कि इन सभी प्रश्नों के उत्तर वर्तमान परिप्रेक्ष्य में न चाहते हुए भी नकारात्मकता को आत्मसात किये हुए हैं।
हमें और हमारे युवाओं को निश्चित तौर पर विश्व, राष्ट्र, समाज, परिवार और अंत में स्वयं के हितों को लेकर कुछ बातों पर ध्यान देना ही होगा। आज के इन यक्षप्रश्नों के उत्तर हमारे युवाओं को स्वयं से या फिर स्वामी विवेकानंद जी के साहित्य से ढूँढना ही होंगे। एक मित्र के रूप में मैं आप सभी युवाओं को अपने विकास हेतु कुछ बिन्दुओं पर ध्यान देने के लिए कहना चाहता हूँ।
आप सभी युवा मित्रों को सकारात्मक दृष्टिकोण से युक्त होना होगा, लक्ष्यप्राप्ति के लिए कटिबद्ध होना होगा, नवाचारों को अपनाने हेतु तत्परता दिखाना होगी। आप सभी को ये बात अपने मन-मस्तिष्क में बैठाना होगी कि असफलता स्थायी नही होती यानि कि हम निरंतर अभ्यास के माध्यम से सफलता अर्जित कर सकते हैं।
मेरी सलाह है कि आप एक दोहे को कंठस्थ कर लीजिए:- “करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान। रसरी आवत जात ते, सिल पर परत निसान।।“ अर्थात् निरंतर अभ्यास करने से एक मूर्ख आदमी भी बुद्धिमान बन सकता है, जिस तरह कुँए की मुंडेर पर बार-बार रस्सी के घिसने से उस पर निशान पड़ जाते है, ठीक उसी तरह यदि इंसान बिना हिम्मत हारे निरंतर कार्य अथवा कोशिश करता रहे तो एक न एक दिन वह अवश्य ही सफल हो जाता है।
एक बहुत ही प्रेरणादायक कविता है जो श्री दुष्यंत कुमार जी ने लिखी है:-“कौन कहता है आसमाँ में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों”। यह कविता हमारे हौंसलों से हमें हर मैदान फतह करने की प्रेरणा देती है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि हमारी युवा पीढ़ी आज ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के शुभावसर पर निश्चित ही स्वामी विवेकानंद जी के दर्शन एवं साहित्य से प्रेरणा लेकर स्वयं तथा राष्ट्र को विकास के पथ पर अग्रसर करेंगे ताकि हम हमारी इस अतिशेष युवाशक्ति के बल पर विश्वगुरु के पद पर आसीन हो सकें।
इन्हीं शुभकामनाओं के साथ।
जयहिंद!