देवव्रत का संकल्प बना भीष्म प्रतिज्ञा

देवव्रत का संकल्प बना भीष्म प्रतिज्ञा

महापौर की क़लम🖋️ से

देवव्रत का संकल्प बना भीष्म प्रतिज्ञा…

नमस्कार इंदौर,

महाभारत महाकाव्य की जब बात होती है तो कहानी श्री कृष्ण, पांडवों और कौरवों के युद्ध के मध्य घूमती रहती है। हर व्यक्ति के मन-मस्तिष्क में कृष्ण, पांडव एवं कौरवों का चित्रण रहता है, किन्तु इस पूरी महाभारत में एक महत्वपूर्ण एवं प्रेरणादायी व्यक्तित्व भीष्म पितामह का है, भीष्म पितामह का नाम सुनते ही हमें एक पराक्रमी योद्धा का सशक्त चेहरा याद आता है। एक ऐसा पितृभक्त पुत्र जिसने अपना पूरा जीवन एक प्रतिज्ञा को पूर्ण करने में व्यतीत कर दिया। एक ऐसे निष्काम कर्मयोगी, जिन्होंने अपने पिता के लिए अपने जीवन, अपनी इच्छाओं और सुखों का त्याग कर दिया।

भीष्म पितामह का मूल नाम देवव्रत था, वे राजा शांतनु एवं गंगा माँ के पुत्र थे, इसी कारण देवव्रत का नाम गंगापुत्र भी है। देवव्रत से भीष्म पितामह बनने की कहानी में पितृभक्त पुत्र का त्याग समाहित है, अपने राज्य के प्रति निष्ठा समाहित है, ऐसी निष्ठा जिसमें राष्ट्र प्रेम का भाव समाहित है। निष्ठा के अलंकार की प्रतिमूर्ति भीष्म पितामह हैं।

अपना सर्वस्व जीवन राष्ट्र के लिए अर्पण कर देने वाले भीष्म पितामह से हम और आप दृढ़ता, दृढ़प्रतिज्ञा, साम्राज्य के प्रति निष्ठा, गृहस्थ सुखों का त्याग एवं देशहित के लिए सब कुछ कर जाने की भावना सीख सकते हैं। “राष्ट्राय स्वाहा इदं मम् इदं मम्” को सच्चे अर्थों में आत्मसात करने वाले भीष्म पितामह ही हैं, जिन्होंने अपने पिता से मिले अमरत्व के आशीर्वाद के बल पर तब तक अपने आपको जीवित रखा, जब तक कि उन्होंने साम्राज्य को मजबूत एवं सशक्त हाथों में नही देखा। साम्राज्य को सशक्त हाथों में सौंपकर ही उन्होंने अपनी इच्छानुसार अपने प्राण त्यागे।

निष्ठा के शिरोमणि भीष्म पितामह ने साम्राज्य को स्थायित्व प्रदान करने के निमित्त आजीवन हस्तिनापुर राज्य के सिंहासन के प्रति आस्था रखी तथा जो भी शासक उस सिंहासन पर आसीन हुए, उनकी सुरक्षा तथा राज्य की सुरक्षा हेतु सदैव तत्पर रहे। देशभक्ति का ऐसा उत्कृष्ट उदाहरण समूचे इतिहास में और कहीं दृष्टिगत नही होता।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में राष्ट्र के विकास हेतु ऐसी ही निष्ठा यशस्वी प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी के कार्यकाल में दृष्टिगत होती है, अपने घर-परिवार से दूर रहकर अपना सम्पूर्ण जीवन देश तथा देश के विकास को समर्पित करने वाले प्रधानमंत्री जी का सादगीपूर्ण व्यक्तित्व हमें उनमें भीष्म पितामह के व्यक्तित्व की छवि दिखाता है। आजीवन अपने घर-परिवार से दूर रहे आदरणीय प्रधानमंत्री जी की माता की मृत्यु भी उन्हें अपनी दृढ़प्रतिज्ञा से नही डिगा पाई, इस दुःख की घड़ी में भी माननीय मोदी जी के लिए राष्ट्र का विकास सर्वोपरि रहा, इस असहनीय दुःख के साथ भी उनके लिए राष्ट्र की प्रगति, राष्ट्र के संसाधनों में वृद्धि महत्वपूर्ण रही। उनके राष्ट्रप्रेम को देखते हुए विरोधी भी उनके इन कार्यों के कायल हो गए, और सभी एक स्वर में इस बात से सहमत हो गए कि इस प्रकार का त्याग एवं सादगी हर किसी के बस की बात नही है।

साथियों! आज भीष्म पितामह की जयंती पर उन्हें तथा उनकी निष्ठा को प्रणाम करते हुए हम उन्हीं की तरह राष्ट्र प्रेम तथा राष्ट्र के प्रति निष्ठावान होने का संकल्प करें ताकि राष्ट्र सर्वोपरि रहे और हमारा ये भारत देश निरंतर समृद्धि की ओर अग्रसर होकर विश्वगुरु बन सकें।

इन्हीं शुभकामनाओं के साथ।

जयहिंद!

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