कितना मुश्किल है नरेंद्र मोदी होना ?

कितना मुश्किल है नरेंद्र मोदी होना ?

कितना मुश्किल है नरेंद्र मोदी होना ?

हम सभी के लिए कितना आसान है न अपने घर, परिवार एवं दोस्तों के साथ रहना। बिना चिंता के बस खुद में व्यस्त होना और देश के बारे में बात करते हुए पूरे सिस्टम को दोष देना। किन्तु समय-समय पर कुछ बिरले लोग ऐसे होते हैं जो अपने घर, परिवार एवं दोस्तों के नही होते अपितु यह सम्पूर्ण राष्ट्र ही उनका सब कुछ होता है, उन्हें बस अपने राष्ट्र की प्रगति का विचार उर्जावान बनाये रखता है। ऐसे ही एक व्यक्तित्व को मैंने और आपने देखा है, वह व्यक्तित्व है हमारे देश के प्रधानमंत्री आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी।

मोदी जी के प्रति मेरी श्रद्धा आज के वाकये के बाद और अधिक बढ़ गयी है, अपने आपको आजीवन देश के प्रति समर्पित कर चुके आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी के लिए पिछले कुछ दिन इम्तहान के दिन थे। उनकी माताजी माँ हीराबेन का स्वास्थ्य विगत कुछ दिनों से ठीक नही था, उनके अस्वस्थ होने की खबर पूरे देश को मीडिया के माध्यम से मिल रही थी। हीराबेन का यह बेटा या यों कहें की राष्ट्रसेवक आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी ऐसे समय में भी राष्ट्र की प्रगति के विचारों से ओतप्रोत हो अपनी अस्वस्थ माँ से दूर होकर अपनी भारत माता की प्रगति, अपने देश के गरीब आदमी के विकास की योजनाओं के लिए कटिबद्ध होकर देश की राजधानी दिल्ली में रहकर नवीन योजनाओं के लिए कार्य कर रहे थे।

आज सुबह जब सम्पूर्ण राष्ट्र को माँ हीराबेन के निधन का असहनीय पीड़ादायी समाचार मिला, तब आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी अपने देश के प्रति दायित्वों को पूर्ण कर व्यक्तिगत दायित्वों का निर्वहन करने अपनी माँ के अंतिम दर्शन करने अहमदाबाद आए।

मैं ही नही अपितु सम्पूर्ण राष्ट्र हीराबेन की अंतिम यात्रा हेतु वीआईपी प्रोटोकॉल की उम्मीद कर रहा था, किन्तु सबकी अपेक्षाओं को दरकिनार करते हुए इस राष्ट्रसेवक ने इतनी सादगी से माँ हीराबेन का अंतिम संस्कार किया कि सम्पूर्ण राष्ट्र एक स्वर में माँ हीराबेन और उनके पुत्र श्री नरेंद्र मोदी जी की भूरी- भूरी प्रशंसा करते नही थक रहा है।

जहाँ आम नागरिक भी अपने अभिभावकों या अपने प्रिय की अंतिम यात्रा को भव्य स्वरुप देने की हरसंभव कोशिश करता है, वहीं हमारे प्रधानमंत्री जी ने इस सादगीपूर्ण कार्य से एक ऐसा संदेश सम्पूर्ण विश्व को दिया है, जो सदियों तक याद किया जायेगा।

आज के इस लेख का शीर्षक “कितना मुश्किल है नरेंद्र मोदी होना?” यह अपने आप में एक ऐसे विषय की एक अंतहीन यात्रा है जिसके बारे में जितनी बातें की जाए वह कम है, किन्तु आज मोदी जी के उन कोमल अहसासों की बात मैं आप सभी से करना चाहूँगा। इस संसार में किसी भी सामान्य प्राणी के लिए सबसे बड़ा दुःख है, उसकी माँ की मृत्यु का समाचार। इस दु:खद समाचार को सुनकर भी स्वयं को सामान्य बनाये रखना ये आम मानव के बस की बात नही है। खासकर तब जब आप भारत जैसे राष्ट्र के प्रधानमंत्री हो और उसके बाद भी इतनी सादगी से अंतिम संस्कार की सम्पूर्ण प्रक्रिया को अंजाम दें तो निश्चय ही इस सबके लिए एक “स्थितप्रज्ञ व्यक्तित्व” का होना अत्यंत आवश्यक है।

अपनी माताजी की अंतिम यात्रा के बाद भी राष्ट्रप्रथम का भाव लेकर पश्चिम बंगाल की पहली “वन्दे भारत ट्रेन” का लोकार्पण करना किसी महामानव के ही बस की बात है। युवा काल से ही आप “राष्ट्राय स्वाहा इदं मम इदं मम” की भावना से प्रेरित होकर राष्ट्र की प्रगति में लगे रहे, जिसको लेकर किसी के मन में किंचित भी संशय का भाव नही है, किन्तु आज जो आपने किया है वह हर किसी के बस की बात नही है।

एक बच्चे के लिए इस संसार में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति कोई है तो वह है उसकी माँ, क्योंकि बच्चे के जन्म से ही नही अपितु गर्भकाल से ही माँ- बेटे के मध्य एक अटूट प्रेम, विश्वास एवं अटूट श्रद्धा की डोर बंध जाती है, जिसके आगे सभी प्रण, लक्ष्य और सम्मान फीके लगते हैं, किन्तु आज जिस व्यवहार का परिचय आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी ने दिया है, उसके बाद तो मैं ही नही अपितु आप सभी भी यही कहेंगे कि “कितना मुश्किल है नरेंद्र मोदी होना?”

पुष्यमित्र भार्गव

महापौर, इंदौर

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